समज़ ( प्रथम प्रयत्न – हिंदी साहित्य )
ज़िन्दगी की भागदौड़ में रिश्तों को भुला जिसे नहीं संभाला वो हाथोसे छूटा रिश्तों की गहराई में प्यार ढूंढने मैं चला प्यार तो मिला नहीं हम आगे बढ़ना सीख गए रिश्तों से खुद को ऊपर उठाया मंज़िल की और मैंने खुद को झुकाया तोड़ दिए नकली रिश्तों के धागे अभी भी कहीं था प्यार कहीं जूठे वादे रस्ते पर मैंने साथ चन्द लोगों को पाया साथ था केवल परिवार और दोस्तों का साया मैं चला , मैं दौड़ा , कभी गिरा फिसल कर उन्हीने मुझे संभाला और फिरसे उठाया पहोंचा मंज़िल पर लोग वापस आये प्यार जताया फिरसे रिश्ते बनाये पर जान लिया था मैंने ज़िन्दगी की सच्चाई कौन थे वो लोग जिन्होंने मेरी ज़िन्दगी थी सँवारी अँधेरी काली रातों में चाँद ढूंढने था मैं चला चाँद तो मिला नहीं मुझे चमकते सितारे मिल गए