इश्क़ का आशियाना

ईश्क़ का आशियाना, है कि नहीं
मैं ये नहीं जानता।
अक्स पाने को क्यों ज़ुमते है सभी
मैं ये नहीं जानता।
ईश्क़ है पेड़ या है ये पतझड़
चाँद है पूरा या फिर अमावस
वक्त की तरह ये क्यों ठहरता नहीं
मैं ये नहीं जानता।
दिल तो मदहोश है उसके जज़्बातों में
दिन को हँसता है रोता घनी रातों में
है दिलों का उदासी से रिश्ता कोई
मैं ये नहीं जानता।

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